थार की बूढ़ी माई. दरअसल थार की बालुई रेत में गुलाबी या चटक लाल रंग का एक छोटा सा जीव आषाढ़ में या मानसून की पहली बारिश के साथ दिखाई देता है। चटक लाल रंग का या कोमल सा जीव आमतौर पर बारानी या खाली पड़े खेतों में घूमता मिलता है। दिखने में यह जीव बेहद मुलायम होता जैसे कि कोई बूढी नानी, मुलायम कोमल, झुर्रियों वाला, आंखों को अच्छाि लगने वाला शायद इसी कारण इसका नाम बूढ़ी नानी या बूढ़ी माई पड़ गया।
थार में इसे बूढी माई, तीज सावण री डोकरी व ममोल के नाम से भी पुकारा जाता है। तो हिंदी में इंद्रवधु व इंद्रगोप इसी के नाम है।
अंग्रेजी में इस बूढ़ी माई को रेड वेलवेट माइट Red Velvet Mite कहा जाता है जो ट्रोंबोबीडीडेई Trombidiidae) परिवार का है। जानकार इसे पूर्ण मकड़ीवंशी या लूता बताते हैं जो हर वक्त) शिकार पर रहता है। लेकिन इसे किसी पर हमला करते हुए नहीं देखा गया। यह मानव प्रजाति से दूर रहते हैं।
इस बूढ़ी माई को पर्यावरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह जीव मृदा संधिपाद या आर्थरोपाड समुदाय का एक हिस्साै है जो जंगलों या वनस्थ ली में सड़न प्रक्रिया (Decomposition) के लिए बहुत ही महत्व पूर्ण है और यह प्रक्रिया समूची पारिस्थितकी के लिए बहुत मायने रखती है. फंगी और बैक्टररिया को खाने वाले कीटों का फीड करते हुए यह छोटा जीव सड़न प्रक्रिया (Decomposition) को प्रोत्साहित करता है.