राजस्थान यानी माटी के इस देश का पानी से आंख मिचौली का संबंध रहा है। माटी का यह समंदर कुल मिलाकर पानी की नदियों को तरसा है और यहां के लोगों में पानी को घी की तरह बरतने का सलीका खुद ब खुद आ गया। वक्त के बड़े बुजुर्गों ने यहां यही सीख दी कि घी बिखर जाए तो कोई बात नहीं लेकिन पानी नहीं बिखरे क्योंकि वह अनमोल है। पानी की कद्र करने वाले इस प्रदेश में अगर जल के परंपरागत स्रोत्रों की बात की जाए तो सबसे पहले कुएं आते हैं।
कुंए या कुंआ। आमतौर पर कुंए मीठे पानी के वे स्रोत रहे जिनमें प्राय: साल भर पानी रहा। ज्यादातर कुएं पातालतोड़ यानी बहुत अधिक गहराई वाले रहे। इनसे पानी निकालने के लिए रहट सहित अनेक तरह की विधियां काम में ली जाती थीं। अरावली के पहाड़ी इलाकों के आसपास पड़ने वाले पूर्वी राजस्थान या कहें कि मेवाड़ में कुंए ही पानी का मुख्य स्रोत रहे हैं। आज भी हालात कमोबेश वैसे ही हैं।
तालाब की बात करें। तो तालाब को राजस्थान में सर, सरोवर, जोहड़, जोहड़ी जैसे कई नामों से पहचाना जाता है। बात एक ही है। तालाब जल का प्राकृतिक स्रोत है। तालाब प्राय: निचाण वाली पक्की माटी जमीन में होते हैं जहां बारिश आदि का पानी इकट्ठा हो जाता है जो साल भर काम आता है। (कृपया वीडियो देखें)