विनिवेश यानी डिसइनवेस्टमेंट, इस शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के किसी उद्यम यानी सरकारी या सार्वजनिक कंपनी की कुछ या पूरी हिस्सेदारी को बेचने के लिए किया जाता है.
विनिवेश के बाद कंपनी का अंशधारिता प्रारूप बदल जाता है. सरकार इसके जरिए सार्वजनिक उद्यम में अपनी ईक्विटी या हिस्सेदारी को बाजार में बेचती है. विनिवेश का पहली बार प्रयोग 1991-92 में किया गया था. इसके बाद इस शब्द का इस्तेमाल आर्थिक व राजनीतिक मोर्चे पर बहुत हुआ है.
सरकार ने शुरू में केवल उन्हीं सार्वजनिक कंपनियों में विनिवेश का निर्णय किया था जो लगातार घाटे में चल रहे थे. बाद में ऐसी कंपनियों में भी विनिवेश किया गया जो लाभ में चल रही थीं.
कहा जाता है कि भारत में विनिवेश नीति का उद्देश्य सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भागीदारी व संसाधन जुटाना है. सरकार ने सार्वजनिक कंपनियों में विनिवेश की नीति को 1991-92 से लागू किया.
हालांकि, विदेश संचार निगम लिमिटेड (वीएसएनएल) पहली केंद्रीय सार्वजनिक कंपनी थी जिसमें सार्वजनिक पेशकश के जरिए निवेश किया गया. ओएनजीसी ने 2003-04 में एफपीओ के जरिए 10,542 करोड़ रुपये जुटाए जो रिकार्ड है.
वित्त वर्ष 2011-12 में पूंजी बाजार की खराब हालत के कारण सरकार लगभग 1144.55 करोड़ रुपये ही जुटा पाई जबकि उसने इसके लिए 40,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था.