अरब स्प्रिंग यानी बहार-ए-अरब या अरबी बसंत 2011 के सबसे चर्चित शब्दों में से एक रहा. दरअसल यह शब्द की जड़ें ट्यूनीशिया में हैं. वहां एक फल विक्रेता मोहम्मद बुअजीजी ने महंगाई से तंग आकर आत्मदाह कर लिया.
इस घटना से ट्यूनीशिया में लोगों के सब्र का बांध टूट गया और 2011 के शुरू में सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हो गया. तानाशाही सरकारों के खिलाफ इस तरह के जन आंदोलन ने ट्यूनीशिया व समूचे अरब जगत में एक क्रांति की शुरूआत की जिसे पहले जैसमिन क्रांति का नाम दिया गया फिर अरब स्प्रिंग का.
बुअजीजी के आत्मदाह के एक साल के भीतर तीन अरब देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सत्ता छोड़नी पड़ी. कुछ अब भी अपनी सत्ता बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. तो अरब जगत में आई जनतांत्रिक लहर को अरब स्प्रिंग का नाम दिया गया. इस क्रांति असर मिस्र, लीबिया, यमन से लेकर बहरीन व सीरिया में और अल्जीरिया, इराक, जार्डन, कुवैत, मोरक्को तथा ओमान तक में देखने को मिला. जहां बड़े पैमाने पर जन प्रदर्शन हुए. सत्ता को ढहाना चाहती है जनता (Ash-shaʻb yurīd isqāṭ an-niẓām) यह राजनीतिक नारा इसी काल में चर्चित हुआ.