ब्रेस्ट इंप्लांट

महिलाओं के स्‍तन फटने का मामला विशेषकर 2011 में चर्चा में रहा है. फ्रांस की ब्रेस्ट पीआईपी इंप्लांट कंपनी पर आरोप है कि उसने ब्रेस्ट इंप्लांट (स्‍तन प्रतिरोपण) में खराब सिलीकन का इस्तेमाल कर दुनिया भर में लाखों महिलाओं व अन्‍य लोगों की सेहत को जोखिम में डाला. कंपनी पर मानवहत्‍या का आरोप है. पुलिस ने इस संबंध में कंपनी के प्रमुख को गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल अनेक महिलाएं कई कारणों के चलते अपने स्‍तनों के आकार, प्रकार में बदलाव चाहती हैं या कृत्रिम स्‍तन लगवाती हैं. यह चिकित्‍सा की एक पद्धति है. इसे ही स्‍तन प्रतिरोपण या ब्रेस्‍ट इंप्‍लांट कहते हैं. यह मामला 2010 में तब सामने आया जबकि ब्रेस्‍ट इंप्‍लांट कराने वाली अनेक महिलाओं के स्‍तनों में विस्‍फोट होने लगा यानी कि वे फटने लगे. जांच में सामने आया कि कंपनी ने ब्रेस्‍ट इंप्‍लांट में खराब औद्योगिक सिलीकन का इस्‍तेमाल किया.  दुनिया भर में 64 से अधिक देशों में चार-पांच लाख महिलाओं ने पोली इंप्लांट प्रोथेज पीआईपी का इस्तेमाल ब्रेस्ट इंप्लांट में कराया था इसके बाद कंपनी को बंद कर दिया गया. फ्रांस के बाद जर्मनी और चेक रिपब्लिक समेत कई देशों ने सावधानी के लिहाज से लोगों को इंप्लांट निकलवाने की सलाह दी, हालांकि ब्रिटेन ने ऐसा करने से मना कर दिया. यूरोप के 13 देशों और दक्षिण अमेरिका के लगभग सारे देशों ने भी अपने यहां इंप्लांट कराने वाली महिलाओं से कहा कि वे अपनी जांच कराएं.

पॉली इमप्लांट प्रोथीज़ यानी पीआईपी कंपनी की स्‍थापना जॉं क्लाउड मास ने 1991 में की थी.  पीआईपी के ऊपर स्तन में लगाए जाने वाले इमप्लांट के लिए घटिया माल सप्लाई करने का आरोप है. पुलिस ने इस मामले में पिछले साल जांच शुरू की थी. पीआईपी पर आरोप है कि प्रतिरोपण किए जाने वाले स्तन में घटिया जेल का इस्तेमाल किया और इस बात को माल को प्रमाणित करने वाली कंपनी से जानबूझकर छिपाया. कंपनी ने इसे तैयार करने के लिए जिस ‘जेल’ यानी एक तरह के तरल मिश्रण का प्रयोग किया उनका इस्तेमाल औद्योगिक क्षेत्र में किया जाता है.

Author: sangopang

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