मोहन जो दड़ो इक सभ्यता थी जो दुनिया में सबसे पहले विकसित होने वाले समाज से बनी. इक बस्ती थी जहां दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी कालीन सभ्यता पली फूली और मानों अचानक लुप्त हो गई. मोहन जोदड़ो को मुअन जोदड़ो, मोहें जो दड़ो, मुअन जो दरो या मुअनजदड़ो भी कहा जाता है. वैसे फिलहाल मुअनजोदड़ो पाकिस्तान के लरकाना जिले, सिंध प्रांत में है औ सिंधी में इसका मतलब होता है मृतकों का टीला (Mound of the Dead).
यानी चौथी -पांचवीं से लेकर कालेज तक जिस मोहनजोदड़ो का हमने पढ़ा, जाना और सोचा वह यहां आकर मुअनजोदड़ो यानी मृतकों का टीला हो गया है.
हड़प्पा मुअन जो दरो या सिंधु घाटी सभ्यता के लगभग 100 स्थलों का अब तक पता चला है उनमें मुअन जो दरो सबसे बड़ा नगर पाया गया है. कहा जाता है कि यह शहर लगभग 4600 साल पहले या 2600 ईस्वी पूर्व पला फूला. हालांकि बाद में यह सभ्यता लुप्त हो गई यानी शहर का शहर माटी में दब गया. इस सभ्यता के लुप्त होने के अनेक कारण बताए जाते हैं.
हां, अवशेषों की खोज 1922 के बाद ही हुई. 1980 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर घोेषित किया गया.
इस सभ्यता के दो अन्य प्रमुख शहर हड़प्पा व कालीबंगा हैं. मुअन जो दरो इन सबमें सबसे बड़ा व व्यवस्थित शहर पाया गया है. वहां मिले अवशेषों में नृतकी की मूर्ति व पशुपति शिव की मुहर शामिल है. इसके साथ ही यहां का विशाल स्नानागार भी पुरातत्वविदों के लिए कौतूहल का विषय रहा है.
वैसे एक जीता जागती सभ्यता अचानक कैसे लुप्त हो गई और बाद में किसने मोहनजोदड़ो को खोजा, इन दो सवालों के अलग अलग जवाब हैं. सरकारी भाषा में कहें तो 1922 में राखलदास बनर्जी व दयाराम साहनी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो व हड़प्पा में हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष खोजे गए जिनसे लगभग 4600 वर्ष पूर्व की प्राचीन सभ्यता का पता चला था. वहीं अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस सिंधु घाटी नामक इस उन्नत सभ्यता की पहली खोज कालीबंगा में 1914 में इटली के एलपी तैस्सितोरी ने की थी. सिंध में मुअन जो दरो की खुदाई 1922 में हुई थी.
पत्रकार संपादक ओम धानवी ने मोहनजोदड़ो को टटोलते हुए एक यात्रा वृतांत ‘मुअनजोदड़ो’ लिखा है. इसे वाणी प्रकाशन ने छापा है. [pic curtsy internet]