रोटावैक (Rotavac) रोटावायरस की रोकथाम के लिए हमारे देश में ही विकसित और निर्मित दवा (वैक्सीन) है. इसे नौ मार्च 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेश किया. देश में विकसित इस पिलाने की दवा से अतिसार (डायरिया) के कारण नवजातों की मृत्यु की समस्या से निपटने के प्रयासों को बल मिलने की उम्मीद है. रोटावायरस के खिलाफ यह दवा वैश्विक रूप से तीसरी वैक्सीन है और वर्तमान मूल्य पर सबसे सस्ती है. इसकी कीमत एक डालर है.
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने इस वैक्सीन के विकास को चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी का सफल उदाहरण बताया.
रोटवैक का विकास व निर्माण सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल के तहत हुआ है. इसमें विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय, अमेरिकी सरकार के संस्थान और भारत के सरकारी संस्थान और स्वयंसेवी संगठनों ने साझेदारी की. बिल व मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने इसमें समर्थन दिया. इस टीके के विकास और उत्पादन के लिए हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक को भारत अमेरिका वैक्सीन एक्शन प्रोग्राम द्वारा 1997-98 में चुना गया था. कंपनी से वैक्सीन की कीमत प्रति खुराक एक अमेरिकी डालर रखने को कहा गया.
ज्ञात रहे कि रोटावायरस के कारण डायरिया से हर साल 10 लाख लोग अस्पतालों में दाखिल होते हैं और पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 80 हजार बच्चों की मृत्यु हो जाती है.
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