वित्त वर्ष 2015-16 के लिए आर्थिक समीक्षा (economic survey) 27 फरवरी 2015 को संसद में पेश की गई. वित्तमंत्री अरूण जेटली ने इसे सदन के पटन पर रखा. इस समीक्षा में अगले वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर आठ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है तथा और सुधारों को बल देने की बात कही गई है.
इसी तरह समीक्षा में देश में महिलाओं से होने वाले व्यवहार पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि महिलाओं की स्थिति और उनसे होने वाले व्यवहार में सुधार लाना विकास की प्रमुख चुनौती है. साथ ही उम्मीद जताई गई है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन से सहयोगात्मक संघवाद को बढ़ावा मिलेगा.
देश भारत के निर्यात में गिरावट पर चिंता जताते हुए समीक्षा में कहा गया है कि इस गिरावट के कारण कारोबार का वातावरण लगातार चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. समीक्षा में परियोजनाओं के लंबित होने पर चिंता जताई गई है और खेती बाड़ी के लिए राष्ट्रीय साझा बाजार विकसित करने की जरूरत जताई गई है.
समीक्षा में मुख्य रूप से कहा गया है, कि:
- भारत एक ऐसे मोड़ पर आ पहुंचा है, जहां से यह दहाई अंक यानी दस प्रतिशत की मध्यावधिक वृद्धि दर पर अग्रसर हो सकता है जिससे देश में ‘हर आंख से आंसू पोंछने’ के बुनियादी उद्देश्य को हासिल किया जा सकेगा.
- वृहद अर्थव्यवस्था में ज्यादा स्थायित्व आया है, सुधार शुरू किये गये हैं, वृद्धि में गिरावट का सिलसिला समाप्त हो गया है और अब अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती दिख रही है.
- आने वाले वर्षों में बाजार मूल्य पर वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2014-15 की तुलना में करीब 0.6 -1.1 प्रतिशत अधिक रहने का अनुमान है. वर्ष 2014-15 के नए अनुमानों को आधार मानते हुए वर्ष 2015-16 में बाजार मूल्य पर वृद्धि दर 8.1- 8.5 प्रतिशत रहने की सम्भावना है.
- बजट में वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा वर्ष 2014 के लिए कुल राजस्व से जीडीपी अनुपात का अनुमान 19.5 प्रतिशत व्यक्त किया गया है, जिसे तुलना देशों के स्तर तक ले जाने की जरूरत है- उभरती एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए 25 प्रतिशत और जी-20 की उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए 29 प्रतिशत का अनुमान व्यक्त किया गया है.
- निवेशकों को कानूनी सुनिश्चितता और विश्वास प्रदान के लिए कोयला, बीमा और भूमि अध्यादेशों को कानून में बदलने की आवश्यकता है.
वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक को कानून में परिवर्तित करने की आवश्यकता है. - सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति नियंत्रण में वर्तमान सफलता को समेकित करने के लिए मौद्रिक नीति प्रारूप समझौते को अंतिम रूप देना चाहिये और उन्हें संस्थागत व्यवस्था में संहिताबद्ध किया जाना चाहिये.
- श्रम और भूमि कानूनों के सुधार तथा कारोबार की लागत में कमी लाने के लिए राज्यों और केंद्र को संयुक्त प्रयास करने की आवश्यकता है.
- अर्थव्यवस्था से भारतीय रिजर्व बैंक का मुद्रास्फीति लक्ष्य 0.5-1.0 प्रतिशत तक प्रभावित होने की सम्भावना होती है और इससे आर्थिक नीति को और ज्यादा सरल बनाने का मार्ग प्रशस्त होता है.
- वातावरण चालू लेखा और उसके वित्त पोषण के लिए अनुकूल है, हालांकि अमरीका में मौद्रिक नीति के बदलावों से उत्पन्न जोखिमों और यूरोजोन में होने वाले उतार-चढ़ावों पर निगरानी आवश्यक है.
- कृषि क्षेत्र की चुनौतियों से व्यापक ढंग से निपटने और कृषि क्षेत्र में चार प्रतिशत वृद्धि निरंतर आधार पर सुनिश्चित करने का समय आ चुका है.
- वित्तीय विश्वसनीयता और मध्यावधि लक्ष्यों के बीच तालमेल सुनिश्चित करने के लिए, आगामी बजट में वित्तीय और राजस्व घाटे में कमी लाने के लिए खर्च पर नियंत्रण की प्रक्रिया शुरू होगी.
- जेम जेएएम नम्बर त्रयी जन धन, आधार, मोबाइल पर आधारित नकद अंतरण योजना जरूरतमंदों तक सार्वजनिक संसाधन प्रभावी रूप से पहुंचाने की अपार संभावना वाली है.
- निजी निवेश को दीर्घावधि तक वृद्धि का प्रमुख वाहक बने रहना चाहिये, लेकिन अल्प से मध्यावधि सार्वजनिक निवेश को, विशेष रूप से रेलवे द्वारा किये गए निवेश को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी.
- बैंकिंग व्यवस्था नीति के अनुसार संचालित है, जो दोहरे वित्तीय निरोध (रिप्रैशन) उत्पन्न करती है और प्रतिस्पर्धा में बाधक बनती है. इसका समाधान विनियमन के 4-डी में हैं-डिरेगुलेट, डिफ्रेंशिएट, डाइवर्सीफाई और डिइंटर.
- प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को हासिल करने के लिए स्किल इंडिया के उद्देश्य को उच्च प्राथमिकता दी गयी है.
- भारत के निर्यात में गिरावट आने के कारण कारोबार का वातावरण लगातार चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है.
- महिलाओं की स्थिति और उनसे होने वाले व्यवहार में सुधार लाना विकास की प्रमुख चुनौती है.
- परिवार नियोजन के लक्ष्यों और प्रोत्साहनों के प्रावधान अवांछित रूप से महिला नसबंदी पर केंद्रित हैं. परिवार नियोजन कार्यक्रम महिला के प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के अनुरूप होने चाहिए.
- 14वें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे के लिए दूरगामी परिवर्तनों के सफल कार्यान्वयन का सुझाव दिया है, जिससे सहयोगात्मक संघवाद को बढ़ावा मिलेगा.