हिंदी सिनेमा में बी.आर. चोपड़ा चंद ऐसे निर्देशक में से एक है जिनकी फिल्मों में हमेशा सामजिक मुद्दों और ज्वलंत समस्याओं को तवज्जो दी जाती है. वर्ष 1980 में प्रदर्शित हुई उनकी फिल्म इंसाफ का तराजू (insaf ka tarazu) भी बलात्कार जैसे गंभीर विषय पर आधारित थी.
हॉलीवुड फिल्म ” लिपस्टिक ” से प्रेरित इस फिल्म का निर्माण और निर्देशन बी. आर. चोपड़ा ने स्वयं किया. फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और संवाद शब्द कुमार के थे. फिल्म की नायिका (जीनत अमान) जो की एक कामयाब मॉडल होती हैं के साथ एक रईसजादा (राज बब्बर) बलात्कार करता है और देश की लचर क़ानून व्यवस्था के चलते बड़े आराम से अदालत से बाइज्ज़त बरी हो जाता है, पर जब वह नायिका की किशोर बहन (पद्मिनी कोल्हापुरे) के साथ भी वाही करतूत दोहराता है तो नायिका उसे अपने हाथों मौत के घाट उतार देती है.
फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बेहद कामयाब साबित हुई. अन्य मुख्य भूमिकाओं में थे दीपक पराशर, डॉ. श्रीराम लागू, इफ़्तेख़ार, सिम्मी ग्रेवाल, जगदीश राज, ओम शिवपुरी, सुधा शिवपुरी और धर्मेन्द्र (अतिथि भूमिका में). फिल्म के संगीत का जिम्मा उठाया चोपड़ा के मनपसंद संगीतकार रवि ने. राज बब्बर ने खलनायक की भूमिका में कमाल का अभिनय किया जिसे दर्शक आज भी याद करते हैं.
फिल्म में दिखाए गए बलात्कार के दृश्यों के चलते फिल्म पर अश्लीलता के आरोप भी लगे. वास्तव में इससे पहले किसी भी हिंदी फिल्म में बलात्कार का इतना विस्तृत और भयावह चित्रण नहीं किया गया था. पर इन विवादों के चलते फिल्म की सफलता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा. फिल्म ने फिल्मफेयर अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (पद्मिनी कोल्हापुरे) और सर्वश्रेष्ठ संवाद और संपादन के अपने नाम किये.