भारतीय सिने इतिहास में 1973 एक युगांतरकारी परिवर्तन का साल रहा. जहाँ एक और बॉबी के जरिये किशोर प्रेम की आहट को परदे पर पहली बार प्रदर्शित किया राज कपूर ने तो वहीं निर्माता- निर्देशक प्रकाश मेहरा ने हिंदी फिल्मों के नायक को एक नयी परिभाषा प्रदान की.
जहाँ साठ के दशक का नायक सभ्य, सुशिक्षित और गुणवान था वहीं ज़ंजीर के नायक में सड़ी गली व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश था. पहली बार परदे पर नजर आया वो ” एंग्री यंग मैन ” जिसने आने वाले दो दशको तक रजत पट पर एकछत्र राज किया. यही वो फिल्म थी जिसने अमिताभ बच्चन को पहली बार सफलता का स्वाद चखाया और उन्हें सुपरस्टार का दर्जा दिलाया. इस फिल्म को सबसे पहले मेहरा, देव आनंद को मुख्य भूमिका में ले कर बनाना चाहते थे, पर उन्होंने इंकार कर दिया. फिर इस भूमिका की राज कुमार और धर्मेन्द्र ने भी ठुकरा दिया. फिल्म के लेखकद्वय सलीम-जावेद के कहने पर मेहरा ने एक नए नौजवान को मौका दिया जिसके खाते में इस फिल्म से पहले १२ असफल फिल्में थी. उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है. फिल्म के प्रदर्शित होते ही जैसे क्रांति हो गई. हर वर्ग के लोगों को यह नया नायक भा गया और फिल्म सुपर हिट हो गई.
जया भादुड़ी, प्राण, अजित, ओम प्रकाश, बिंदु, इफ़्तेख़ार और केश्टो मुखर्जी ने फिल्म में अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई. फिल्म के गीत गुलशन बावरा ने लिखे थे और संगीत दिया था कल्यानजी-आनंदजी ने. फिल्म के संगीत भी बेहद कामयाब हुआ, खासतौर से
“यारी है इमान मेरा” गीत, जिसके लिए गुलशन बावरा को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. इसके अलावा फिल्म ने तीन और फिल्मफेयर जीते. इस फिल्म ने भारतीय फिल्मों को बदल के रख दिया और बॉक्स ऑफिस को भी अपना नया सुल्तान ( अमिताभ बच्चन ) दिया जिसका राज आज भी बदस्तूर जारी है.