युवा कवि अनुज लुगुन का जन्म 10 जनवरी 1986 को हुआ था.वे सिमडेगा जिले के जलडेगा पहान टोली के हैं. 2007 में रांची विश्र्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद वे बीएचयू चले गए. वहीं से उन्होंने हिंदी में एमए किया और फिलवक्त वे वहीं से मुंडारी आदिवासी गीतों में आदिम आकांक्षाएं और जीवन-राग विषय पर शोध कर रहे हैं.
युवा कवि रामाज्ञा शशिधर का अनुज लुगुन की कविता के बारे में कहना है कि – ‘ लुगुन की कविता एक ऐसी सौन्दर्य महिमा, शब्द भंगिमा, राजनीतिक चेतना, ज्ञान और संवेदना से भरे युवतर कवि की अनूठी धमक है जो हिन्दी कविता के एकालापी, आत्मालापी भाषाई कौशल, गद्यात्मक खिलवाड़, जनविरोधी रूपात्मकता के विरूद्ध क्रांतिकारी परम्परा की अगली कड़ी है’.
अपनी कविताओं में अनुज आदिवासी अस्मिता की लडाई को स्वर देते हैं –
‘लड़ रहे हैं आदिवासी
अघोषित उलगुलान में
कट रहे हैं वृक्ष
माफियाओं की कुल्हाड़ी से और
बढ़ रहे हैं कंक्रीटों के जंगल ।
दान्डू जाए तो कहाँ जाए
कटते जंगल में
या बढ़ते जंगल में । ‘
उन्हें 2011 का भारत भूषण अग्रवाल सम्मान दिया गया.