चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले (chandrakant deotale) का जन्‍म सात नवंबर 1936 को मध्‍यप्रदेश के बैतूल जिले में हुआ. उनके करीब दस कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं. उनके कविता संकलनों में हड्डियों में छिपा ज्‍वर (1973), दीवारों पर खून से (1975), लकडबग्‍घा हंस रहा है (1980), रोशनी के मैदान की तरफ (1982), भूखंड तप रहा है (1982), आग हर चीज में बताई गयी थी (1987), इतनी पत्‍थर रोशनी (2002), उजाड में संग्रहालय (2003) प्रमुख हैं.

देवताले ने छात्र जीवन से ही पत्रकारिता करनी कर दी थी. 1984 में सागर विश्‍वविद्यालय से उन्‍होंने मुक्तिबोध पर पीएचडी की थी. 1961 से 1996 के बीच उन्‍होंने विभिन्‍न शासकीय विश्‍वविद्यालयों में अध्‍यापन किया.

सेवानिवृति के बाद भी वे स्‍वतंत्र लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं. कविता की बाबत उनका कहना है कि – ‘इस वक्‍त कविता नहीं लिख-सुन सकते वो जो सोचते हैं खाए हुए पेट से. यह वक्‍त, वक्‍त नहीं एक मुकदमा है, या तो गवाही दो या गूंगे हो जाओ हमेशा के वास्‍ते.‘ अपनी कविताओं में अपने समय की विडंबनाओं को बारहा सामने लाते रहे हैं देवताले –

‘ भरोसा करना मुश्किल है इन तस्वीरों पर
द्रौपदी के चीर-हरण की तस्वीर
फिर भी बरदाश्त कर सका था मैं
क्योंकि दूसरी दिशा से लगातार बरस रही थी हया
पर ये तस्वीरें
सब कुछ ही तो नंगा हो रहा है इनमें

छिपाओ इस बहशीपन को
बच्चों और गर्भवती स्त्रियों की नज़रों से
रोको इनका निर्यात
ढक दो इन तस्वीरों को बची खुची हया से ‘
मुक्तिबोध फैलोशिप के अलावा उन्‍हें माखनलाल चतुर्वेदी कविता पुरस्‍कार, मध्‍याप्रदेश शिखर सम्‍मान, मैथिलीशरण गुप्‍त सम्‍मान, पहल सम्‍मान से नवाजा जा चुका है.

Author: sangopang

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