कविवर नरेश मेहता (naresh mehta) का जन्म 15 फरवरी 1922 को मध्य प्रदेश, मालवा के शाजापुर कस्बे में हुआ था. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने एमए किया और आल इण्डिया रेडियो इलाहाबाद में कार्यक्रम अधिकारी रहे. अरण्या , उत्सवा, तुम मेरा मौन हो, उत्तर कथा , दो एकान्त , धूमकेतुः एक श्रुति, पुरुष , प्रतिश्रुति, प्रवाद पर्व , बोलने दो चीड़ को , यह पथ बन्धु था , हम अनिकेतन आदि उनके कविता संकलन हैं.
अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ के कवियां में नरेश मेहता भी हैं. अपने समकालीन कवियों से अलग नरेश मेहता ने संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में रचनाएं कीं. उनकी कविता में रूपक, मानवीकरण, उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों के साथ परंपरागत और नवीन छंदों का प्रयोग हुआ है.
प्रकृति और प्रेम उनकी कविता में अपने नये रूप, ध्वनि और रंग के साथ अभिव्यक्त होता है-
उदयाचल से किरन-धेनुएँ
हाँक ला रहा वह प्रभात का ग्वाला.
पूँछ उठाए चली आ रही
क्षितिज जंगलों से टोली
दिखा रहे पथ इस भूमा का
सारस, सुना-सुना बोली
गिरता जाता फेन मुखों से
नभ में बादल बन तिरता
किरन-धेनुओं का समूह यह
आया अन्धकार चरता,
नभ की आम्रछाँह में बैठा बजा रहा वंशी रखवाला.
पत्रकारिता में भी उनका दखल था. उन्होंने इन्दौर से प्रकाशित दैनिक ‘चौथा संसार’ का सम्पादन किया. साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. 1992 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनका 2000 में निधन हो गया.