छायावादोत्तर काल के कवि जानकीवल्लभ शास्त्री का जन्म 1916 में गया,बिहार के मैगरा ग्राम में हुआ था. प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं. फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए. उन्होंने अधिकांशत: छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं हैं. ‘गाथा` उनकी काव्यकथाओं का संकलन है.कुछ काव्य-नाटकों की भी उन्होंने रचना की . ‘राधा` उनका महाकाव्य है. परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है-
”सांध्यतारा क्यों निहारा जायेगा .
और मुझसे मन न मारा जायेगा ॥
विकल पीर निकल पड़ी उर चीर कर,
चाहती रुकना नहीं इस तीर पर,
भेद, यों, मालूम है पर पार का
धार से कटता किनारा जायेगा .”
रूप-अरूप, तीर तरंग, शिवा, मेघ-गीत, अवंतिका, कानन, अर्पण आदि इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं. इन्हें राजेन्द्र शिखर सम्मान, भारत-भारती, शिवपूजन सहाय सम्मान ‘ आदि से सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावे इन्हें साहित्य वाचस्पति, ‘विद्यासागर, ‘काव्य-धुरीण तथा ‘साहित्य मनीषी आदि उपाधियों से भी सम्मानित किया जा चुका है. 2010 में उन्होंने भारत सरकार का पद्मश्री सम्मान ठुकरा दिया था.उनका निधन सात अप्रैल 2011 को हुआ था.