अदम गोंडवी का जन्म 22 अक्तूबर 1947 को परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में हुआ था. उनकी मां का नाम श्रीमती मांडवी सिंह व पिता देवी कलि सिंह थे. बचपन में उनका नाम रामनाथ सिंह था. अदम कबीर की परंपरा के जनगीतकार हैं. दुष्यंत ने की ग़ज़लों में जो धार हमें मिलती है अदम ने उसे उस एक नये मुकाम तक पहुंचाया-
जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में.
धोती-कुर्ता वाले गंवई वेश-भूषा में जब वे अपने गीतों का पाठ करने उतरते थे तो फिर मुकाबले में अच्छे-अच्छे कवि सामने नहीं टिक पाते थे.
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में.
अदम की शायरी में आम जन का सुख-दुख अपनी विडंबनाओं के साथ अभिव्यक्त होता है. वह वाह और आह करने वाली शायरी नहीं है. उनके निधन के बाद सोशल साइट पर किसी ने लिखा कि अदम गोंडवी यथार्थ की पथरीली भूमि का नहीं एक तपती हुई भट्टी का नाम है. उनकी ग़ज़लें रुलाती हैं, आक्रोशित करती हैं और कहीं न कहीं हमें ख़ुद भी शर्मसार होने को मजबूर करती हैं. उनकी प्रमुख कृतियों में धरती की सतह पर व समय से मुठभेड है.
अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से
बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से
अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
सँजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को क़रीने से.
18 दिसंबर 2011 को उनका निधन हुआ.