छायावाद के चार मुख्य स्तंभों में एक महाकवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी ग्राम में 20 मई 1900 को हुआ था. जन्म के कुछ घंटे बाद ही उनकी माता की मृत्यु हो गयी, आगे उनकी दादी ने उन्हें पाला-पोसा.
पंत का बचपन का नाम गुसाई दत्त था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा अल्मोड़ा में हुई.1918 में वे अपने मँझले भाई के साथ काशी आ गए और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे. वहाँ से मैट्रिक पास करने के बाद वे इलाहाबाद चले गए. उन्हें अपना नाम पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया. फिर म्योर कॉलेज से उन्होंने इंटर में नामांकन कराया पर महात्मा गांधी के आह्वान पर अगले वर्ष उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया. आगे घर पर ही उन्होंने हिन्दी, संस्कृत, बँगला और अंग्रेजी का अध्ययन करने लगे.
पंत चार साल की छोटी उम्र से ही कविता लिखने लगे थे. सन् 1907 से 1918 के बीच उनकी कविताएँ वीणा में संकलित हैं. सन् 1922 में उनके संकलन उच्छवास और 1928 में पल्लव का प्रकाशन हुआ. उनकी अन्य काव्यकृतियों में – ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, युंगात, स्वर्ण-किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, निदेबरा, सत्यकाम आदि हैं. प्रकृति और जीवन के मुग्ध करनेवाले चित्र उनकी कविताओं में मिलते हैं –
”ओ, फेन-गुच्छ
लहरों की पूँछ उठाए
दौड़ती नदियो,
इस पार उस पार भी देखो,-
जहाँ फूलों के कूल
सुनहरे धान से खेत हैं.”
उनके जीवनकाल में ही उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हो गयी थीं जिनमें पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं. हिंदी साहित्य की अनवरत सेवा के लिए उन्हें 1961 में पद्मभूषण , 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. उनका देहांत 1977 में हुआ.