छायावाद के चार स्तंभों में एक कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ. महादेवी वर्मा की मां का नाम हेमरानी देवी और पिता का नाम बाबू गोविन्द प्रसाद वर्मा था. महादेवी वर्मा की शिक्षा 1912 में इंदौर के मिशन स्कूल से आरंभ हुई ,इसके अलावे संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा उन्हें घर पर ही दी गयी. 1916 में नौ साल की छोटी सी उम्र में ही उनका श्री स्वरूप नारायण वर्मा से विवाह हुआ. पर वे पति के संग कभी नहीं रहीं, हालांकि उनका उनसे संबंध मित्रतापूर्ण ही था. विवाहोपरान्त 1919 में उन्होंने क्रास्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद में प्रवेश लिया.
महादेवी ने भी पंत की तरह ही अल्पवय से कविता लिखना आरंभ कर दिया था. अपने समय की अन्य चर्चित कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान उनके मित्रों में थीं. आरंभ में बुद्ध की शिक्षाओं के प्रभाव में आकर महादेवी बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं. फिर गांधीजी की प्रेरणा से वे सामाजिक कार्यों की ओर प्रवृत हुईं .
प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत साहित्य में एम ए के बाद उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या का पद संभाला और चाँद पत्रिका का निःशुल्क संपादन किया. यहीं उनकी भेंट रवीन्द्रनाथ ठाकुर से हुई. कविता के अलावा महादेवी ने संस्मरण-रेखाचित्र- कहानी-निबंध-आलोचना आदि भी लिखी. १९५४ में वे दिल्ली में स्थापित साहित्य अकादमी की सदस्य चुनी गईं. आगे महादेवी जी विधान परिषद सदस्य भी बनीं. महादेवी को निराला “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” करते थे. अपने अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं. उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया. महादेवी की कविता में हृदय की वेदना के मार्मिक चित्र मिलते हैं –
”कौन बन्दी कर मुझे अब
बँध गया अपनी विजय में ?
कौन तुम मेरे हृदय में ? ”
महादेवी वर्मा ने साहित्य और संगीत रचना के साथ चित्रकला और अनुवाद के क्षेत्र में भी काम किया. काव्य संग्रह यामा के लिये 1982 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अलावा भारत भारती आदि अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 11 सितंबर 87 को उनका निधन हुआ. भारत सरकार ने मरणोपरांत उन्हें 1988 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उनकी प्रमुख कृतियों में दीपशिखा, नीहार, नीलांबरा, अग्निरेखा व दीपगीत भी है.