संवैधानिक तरलता अनुपात या एसएलआर (SLR) जमाओं का वह हिस्सा होता है जो बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में रखना होता है. यानी वाणिज्यिक बैंकों को कुल जमाओं का इतना हिस्सा तो अनिवार्य रूप से बनाए रखना होता है।
संवैधानिक तरलता अनुपात, स्टेच्युरी बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 24 के अन्तर्गत सभी बैंकों को यह अनिवार्य है कि वे भारत में अपनी जमाराशियों के कम से कम इतने प्रतिशत के बराबर धन प्रतिभूतियों के रूप में रखें.
रिजर्व बैंक इस प्रतिशत को 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत तक कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप बैंकों को प्रतिभूतियों के रूप में अधिक धन रखना होता है तथा साख की मात्रा घट जाती हैं. केंद्रीय बैंक हर दो महीने पर एसएलआर की समीक्षा करता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने सात जून 2017 को अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को आधा यानी 0.50 प्रतिशत घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया। इसका मतलब है कि बैंकों के पास कर्ज देने के लिये अधिक नकदी बचेगी।