गोल लाइन तकनीक फुटबाल के मैचों में इस्तेमाल होने वाली एक आधुनिक तकनीक है जिसकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि शाट मारने के बाद गेंद पाले यानी गोलपोस्ट में गई या नहीं.
अंतरराष्ट्रीय फुटबाल एसोसिएशन बोर्ड (आईएफएबी) ने इस बहुप्रतिक्षित गोल-लाइन तकनीक को अपनी मंजूरी जुलाई 2012 में दी. अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैचों के नियम तय करने वाली संस्था
इसके लिए जो दो प्रणालियां मंजूरी की गई हैं. इनमें से एक में एक कैमरों और दूसरी में गेंद में लगे सेंसर के आधार पर फैसला किया जाएगा.
यानी अगर कि मैच के दौरान रैफरी फैसला नहीं कर पा रहा हो तो उच्च तकनीक की मदद से पता लगा लगाया जाएगा कि गेंद सही मायने में, गोल लाइन के पार गई या नहीं. यानी गोल हुआ या नहीं. इन तकनीक को हाक आई (Hawkeye) तथा गोल रेफ (GoalRef) के नाम से भी जाना जाता है. तकनीक को सबसे पहले दिसंबर 2012 में फीफा विश्व कप में लागू किया गया.
अधिकारियों को इस तकनीक के फुटबाल में इस्तेमाल का विचार 2010 विश्व कप के दौरान आया जब इंग्लैंड के एक महत्वपूर्ण गोल को गलत घोषित कर दिया गया था.