हिन्दी के ख्यातिलब्ध कवि, उपन्यासकार और पत्रकार अज्ञेय का जन्म सात मार्च 1911 को उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर में हुआ. उनका पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ था. इनके पिता का नाम डॉ.हीरानंद शास्त्री था.
उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा 12 साल की उम्र तक घर पर ही पिता की देख-रेख में हुई. आगे की पढाई उन्होंने मद्रास और लाहौर में की. एम.ए. अंग्रेजी में उन्होंने प्रवेश लिया पर उसी समय देश की आजादी के लिए काम कर रहे एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो गये और सन 1930 में बम बनाने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिए गए. जेल में ही उन्होंने ‘चिन्ता’ और अपनी चर्चित औपन्यासिक कृति ‘शेखर:एक जीवनी’ की रचना की. सन 1936-37 में उन्होंने ‘सैनिक’ और ‘विशाल भारत’ का सम्पादन किया. 1943 से 46 तक वे ब्रिटिश सेना में रहे. 1947 से 50 तक उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में काम किया. इसी बीच 1943 में उन्होंने ‘तार सप्तक’ का संपादन किया आगे दूसरा,तीसरा और चौथा सप्तक इसी क्रम में निकाला.
हिन्दी साहित्य में उन्हें ‘प्रयोगवाद’ और ‘नयी कविता’ जैसे आंदोलनों के प्रतिष्ठाता के रूप में याद किया जाता है. ‘प्रतीक’,’दिनमान’,’नवभारत टाइम्स’, ‘वाक’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का भी उन्होंने संपादन किया. उन्होंने 19 कविता संग्रह,छ:कहानी संग्रह,चार उपन्यास, दो यात्रा संस्मरण,सात निबंध संग्रह आदि की रचना की. कविता संग्रह ‘आंगन के पार द्वार’ के लिए 1964 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए उन्हें 1978 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 1979 में उन्हें युगोस्लाविया का अन्तर्राष्ट्रीय कविता सम्मान ‘गोल्डन रीथ’ से भी सम्मानित किया गया। उनका निधन 4 अप्रैल 1987 में हुआ.
‘शेखर अपनी पराजय से भाग रहा है, अपने दर्द से भाग रहा है। वह बेवकूफ है. वह जीवन से भागने की मूर्खता भरी कोशिश कर रहा है. जीवन से भागकर वह कहां जाएगा ? जो युद्धमुख से भागता है, अपनी पराजय से भागता है, उसके लिए कदम-कदम पर और युद्ध हैं, और पराजय हैं, जब तक कि वह जान ना ले कि अब और भागना नहीं है, टिककर लड़ने न लगे…’ – (शेखर : एक जीवनी – अज्ञेय)