सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1896 को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ था. वे हिन्दी कविता के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में एक हैं. उनकी जन्मतिथि निश्चित नहीं थी इसलिए उनका जन्मदििन माघ मास में वसन्त पंचमी के दिन मनाया जाता है. 11 जनवरी 1921 को पं० महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई थी. महिषादल के विद्यालय की प्रवेश पंजिका के अनुसार 13 सितम्बर 1907 को उनका नामांकन आठवें दर्जे में हुआ था. तब उनकी उम्र 10 साल 8 महीने थी.
निराला का जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सूर्यकुमार कहलाए. उन्होंने हाई स्कूल तक हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया. 1918 से 1922 तक उन्होंने महिषादल राज्य की सेवा. उसके बाद संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया. 1922 से 23 के दौरान उन्होंने कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन. 1923 के अगस्त से वे ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में शामिल हुए .
उसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे. 1942 से मृत्यु पर्यन्त वे इलाहाबाद में रहे और स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य करते रहे. जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ वे छायावाद के प्रमुख स्तंभों गिने जाते हैं. कविता को छंद के बंधन से मुक्ति दिलाने का श्रेय निराला को जाता है-
”आया मौसम खिला फ़ारस का गुलाब,
बाग पर उसका जमा था रोबोदाब
वहीं गंदे पर उगा देता हुआ बुत्ता
उठाकर सर शिखर से अकडकर बोला कुकुरमुत्ता
अबे, सुन बे गुलाब
भूल मत जो पाई खुशबू, रंगोआब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा है कैपिटलिस्ट;
बहुतों को तूने बनाया है गुलाम,
माली कर रक्खा, खिलाया जाडा घाम”
उनकी प्रमुख काव्यकृतियां हैं- परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली आदि. उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं. 15 अक्तूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ.