सूचना के अधिकार का अधिनियम या सूचना के अधिकार का कानून अथवा आरटीआई. केन्द्र व राज्य सरकारों के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए संसद द्वारा मई 2005 में पारित सूचना के अधिकार का अधिनियम 12 अक्टूबर, 2005 से लागू हुआ.
जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष भारत में इसे लागू किया गया. इस कानून के जरिए आम नागरिकों को सरकारी दस्तावेजों व आंकड़ों की लिखित जानकारी लेने का अधिकार मिल गया.
कानून के तहत नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना आवेदन के 30 दिन के भीतर उपलब्ध कराने का दायित्व संबंधित अधिकारियों का होगा. इसके लिए मामूली आवेदन शुल्क के साथ-साथ दस्तावेजों की फोटोकापी कराने/सीडी तैयार करने का शुल्क आवेदक को देना होगा.
निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों को आवेदन शुल्क नहीं देना होता है. नागरिकों को वांछित सूचनाएं उपलब्ध करवाने के लिए प्रत्येक विभाग में लोग सूचना अधिकारी तैनात किए गए हैं. इसी कानून का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने तथा निगरानी के लिए केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन केन्द्रीय स्तर पर 11 अक्तूबर 2005 को किया.
राज्यों में भी राज्य सूचना आयोग का गठन कर मुख्य सूचना अधिकारी नियुक्त किए गए.
यह अलग बात है कि इस कानून ने कई ऐसे मामले उद्धघाटित किए कि सरकार खुद ही फंसती नजर आई और संप्रग के कई नेताओं ने अपने दूसरे कार्यकाल में 2011 में स्वीकार किया इस कानून के कारण शासन संचालन में दिक्कत हो रही है. कई आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या भी इस दौरान कर दी गई.