उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खास पहचान बनाने वाले भुवनेश्वर कुमार की गेंदबाजी में भी वही गुण नजर आते हैं जो उनके शहर के एक अन्य गेंदबाज प्रवीण कुमार की गेंदबाजी में दिखते थे। अंतर इतना है कि भुवनेश्वर अपनी गेंदबाजी और व्यवहार दोनों को सीमाओं में रखना जानते हैं। उनकी लाइन और लेंथ शानदार है और दोनों तरफ स्विंग कराने की उनकी कला से वह किसी भी टीम के लिये उपयोगी बन जाते हैं।
भुवनेश्वर ने 2007.08 से उत्तर प्रदेश की तरफ से नयी गेंद संभालने का जिम्मा अच्छी तरह संभाला। उन्होंने धीरे धीरे निचले क्रम में खुद को उपयोगी बल्लेबाज भी साबित कर दिया। उन्होंने अक्तूबर 2012 में हैदराबाद में दलीप ट्राफी सेमीफाइनल में मध्य क्षेत्र की तरफ से उत्तर क्षेत्र के खिलाफ 128 रन बनाकर अपनी बल्लेबाजी क्षमता का अच्छा परिचय दिया था। इसके तुरंत बाद दिसंबर 2012 में पाकिस्तानी टीम के खिलाफ चेन्नई में उन्हें अपना पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलने का मौका मिल गया। भुवनेश्वर ने अपनी पहली गेंद पर मोहम्मद हफीज को बोल्ड किया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
यह 24 वर्षीय गेंदबाज असल में नयी गेंद का बहुत अच्छा इस्तेमाल करता है। इसलिए कई बाद कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने उनसे शुरू में लगातार दस ओवर करवाये और भुवनेश्वर ने भी कप्तान की उम्मीदों पर खरा उतरकर विरोधी टीम पर दबाव बनाये रखा। जब से वनडे में दो नयी गेंदों का उपयोग किया जाने लगता तब से भुवनेश्वर इस प्रारूप के लिये अधिक उपयोगी साबित हो गये हैं। भुवनेश्वर का अपनी गेंदों पर नियंत्रण रहता है लेकिन अब भी उन्हें डेथ ओवरों की अपनी गेंदबाजी पर मेहनत करने की जरूरत है। वह पुरानी गेंद का उतनी अच्छी तरह से उपयोग नहीं कर पाते हैं जैसे कि एक स्विंग गेंदबाज से उम्मीद की जाती है।
भुवनेश्वर ने अब तक 44 वनडे मैच खेले हैं जिसमें उन्होंने अभी तक भारत के लिये 12 टेस्ट मैच भी खेल चुके हैं जिसमें उन्होंने 45 विकेट लिये हैं लेकिन उनका इकोनोमी रेट 4.62 है। वह वनडे में अपनी बल्लेबाजी कौशल का खास प्रदर्शन नहीं कर पाये हैं। इसके विपरीत भुवनेश्वर ने जो 12 टेस्ट मैच खेले हैं उनमें तीन अर्धशतक जमाये हैं। उन्होंने इन 12 मैचों में 29 विकेट लिये हैं।