कवि संजय कुंदन (sanjay kundan) का जन्म 7 दिसंबर 1969 को बिहार के पटना जिले में हुआ. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया. ‘कागज के प्रदेश में’, ‘चुप्पी का शोर’ और ‘योजनाओं का शहर’ उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
इसके अलावे उनका एक कहानी संग्रह ‘बास की पार्टी’ और एक उपन्यास ‘टूटने के बाद’ भी प्रकाशित हो चुका है. वरिष्ठ कवि विष्णु नागर का उनकी कविता के बारे में मानना है कि -‘संजय की कविता आज की साधारण -सामान्य जिन्दगी का दस्तावेज है’. कविता के विषय में संजय का कहना है कि – ‘कविता मेरा सामाजिक-राजनीतिक वक्तव्य भी है. कविताओं के ज़रिए मैं उनसे संवाद करना चाहता हूँ जो जीवन को देखते हैं मेरी ही तरह और उसे बदलने के लिए बेचैन होते हैं मेरी ही तरह.’
उनकी एक कविता है-
‘योजनाएँ अक्सर योजनाओं की तरह आती थीं
लेकिन कई बार वे छिपाती थीं ख़ुद को
किसी दिन एक भीड़ टूट पड़ती थी निहत्थों पर
बस्तियाँ जला देती थी
खुलेआम बलात्कार करती थी
इसे भावनाओं का प्रकटीकरण बताया जाता था
कहा जाता था कि अचानक भड़क उठी है यह आग
पर असल में यह सब भी
एक योजना के तहत ही होता था
फिर योजना के तहत पोंछे जाते थे आँसू
बाँटा जाता था मुआवज़ा ‘
उन्हें कविता के लिए 1998 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार और हेमन्त स्मृति सम्मान प्राप्त हो चुका है. जीवन यापन के लिए वे एक पत्रकार के रूप में काम करते हैं.