राजकोषीय घाटा क्या है

राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) यानी किसी एक वित्त वर्ष में राजस्व प्राप्तियों तथा अनुदान प्राप्तियों के ऊपर कुल सार्वजनिक व्यय का अन्तर.

सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों व गैर पूंजीगत प्राप्तियों (उधार व देयताओं को छोड़कर) तथा सरकार के कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) कहते हैं.

राजकोषीय घाटे का सीधा सा मतलब है कि सरकार को अपने खर्च यानी व्यय को पूरा करने के लिए विभिन्न स्रोतों से कर्ज लेना पड़ेगा. बढता राजकोषीय घाटा किसी भी देश की पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है. इससे ब्याज दरों में बढोतरी हो सकती है और महंगाई यानी मुद्रास्फीति दर भी बढ सकती है.

इसके कई अन्य गंभीर ‘साइड इफेक्ट’ भी हैं. इसलिए सरकारें कभी नहीं चाहती कि उनका राजकोषीय घाटा बढ़े या उंचा हो.

उदाहरण के रूप में 2014—15 में हमारा यानी भारत का राजकोषीय घाटा 4.1 प्रतिशत रहना अनुमानित है.

मौजूदा सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.9 प्रतिशत रखा है. वह इसे 2017-18 तक घटाकर जीडीपी के तीन प्रतिशत पर लाना चाहती है.

वित्तमंत्री अरूण जेटली ने फरवरी 15 में 2015-16 के लिए आम बजट पेश करते हुए कहा कि तीन प्रतिशत राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तीन साल में हासिल कर लिया जाएगा. नयी रूपरेखा के अनुसार राजकोषीय घाटा 2015-16 में जीडीपी का 3.9 प्रतिशत रहेगा, 2016-17 में 3.5 प्रतिशत और 2017-18 में तीन प्रतिशत रहेगा.

Author: sangopang

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