मोबाइल फोन है क्या बला?

रोटी, कपड़ा, मकान. हमारे देश में कभी इंसान की बुनियादी जरूरतों को इस नारे के साथ परिभाषित किया जाता था. लेकिन इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में मोबाइल क्रांति की शुरुआत से इसमें एक शब्द मोबाइल भी शामिल हो गया. 2010 के दशक में तो यह हर आमोखास की जरूरत में शामिल हो गया. इसने लोगों की जीवनशैली ही बदल दी. लेकिन मोबाइल है क्या फंडा?

वस्तुत: मोबाइल फोन एक ऐसा उपकरण है जिसके जरिए हम चलते फिरते कहीं भी नेटवर्क दायरे में बात कर सकते हैं. इसे सेल्यूलर फोन, सेलफोन, हैंडफोन भी कहा जाता है. मोबाइल फोन के लिए उसका नेटवर्क से तार से जुड़ा होना जरूरी नहीं है. यह बेतार है और रेडियो लिंक के जरिए काम करता है. कार्डलैस और मोबाइल फोन में बड़ा अंतर केवल दूरी या रेंज का है. कार्डलैस्‍ा फोन एक सीमित दायरे में काम करता है जबकि मोबाइल फोन अपने नेटवर्क प्रदाता की रेंज में किसी भी भूभाग में काम कर सकता है.

स्‍मार्टफोन के आने के बाद तो मोबाइल फोन एक तरह से कंप्‍यूटर में ही बदल गया. 3जी सेवाओं की शुरुआत के बाद इनसे वीडियोकालिंग जैसी सुविधा शुरू हुई है. एसएमएस, एमएमएस, फोटो, वीडियो भेजना, चैटिंग, ईमेल सुविधा तो पहले ही इन फोन के जरिए ली जा रही थी.

जहां तक इतिहास की बात है तो पहला सेलफोन मोटोरोला कंपनी के जान एफ मिशेल तथा डा मार्टिन कूपर ने 1973 में प्रदर्शित किया था. रोचक तो यह है कि तब इसका वजन लगभग दो किलो था जो कि 2010 के दशक में घटकर कुछ ग्राम रह गया. वाणिज्यिक रूप से पहला सेलफोन जो बाजार में आया वह डायनाटीएसी 800 एक्‍स था.

भारत में भी पहला मोबाइल मोटोरोला ने बनाया था.

1995 में देश में पहला मोबाइल फोन पेश हुआ और देखते ही देखते इसने लैंडलाइन फोन के अस्तित्‍व को ही संकट में डाल दिया.

Author: sangopang

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