हिन्दी के प्रगतिशील कवि, उपन्यासकार और आलोचक मुक्तिबोध (muktibodh) का जन्म, 13 नवंबर 1917 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योआपुर में हुआ था. इनका पूरा नाम गजानन माधव मुक्तिबोध था.
आमजन की पीड़ा की युगांतरकारी अभिव्ययक्ति को लेकर हमेशा चर्चा में रहे मुक्तिबोध को प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच एक पुल की तरह देखा जाता है. इनके पिता इंस्पेक्टर थे। 1930 में मिडिल की परीक्षा में फेल हो जाने वाले मुक्तिबोध ने आगे 1953 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दीं में एम.ए. की. 1939 में शांता जी से उन्होंने प्रेम विवाह किया.
अज्ञेय ने जीविकोपार्जन के लिए कई तरह के काम किए. स्कूल की मास्टरी, वायुसेना की नौकरी, पत्रकारिता,सूचना तथा प्रसारण विभाग, आकाशवाणी से लेकर पार्टी तक के लिए काम किया. 1958 में अंतत: दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांदगांव में प्राध्यापपक हुए. अज्ञेय के संपादन में निकले ‘तारसप्तक’ के पहले कवि मुक्तिबोध ही थे.
पर यह विडंबना ही रही कि उनके जीते जी उनका कोई कविता संग्रह प्रकाशित नहीं हो पाया. मरणोपरांत ज्ञानपीठ से उनका पहला कविता संग्रह ‘चांद का मुंह टेढा है’ प्रकाशित हुआ. 1980 में उनका दूसरा कविता संग्रह ‘भूरी भूरी खाक धूल’ प्रकाशित हुआ.
इनकी अन्य कृतियों में काठ का सपना और ‘सतह से उठता आदमी’ दो कहानी संग्रह हैं और ‘विपात्र’ एक उपन्यांस है. नयी कविता का आत्मसंघर्ष,नये साहित्यी का सौंदर्यशास्त्री’,’समीक्षा की समस्या्एं’ और ‘एक साहित्यिक की डायरी’ उनकी आलोचनात्मक पुस्तकें हैं. 1985 में राजकमल प्रकाशन ने उनकी रचनावली प्रकाशित की. ‘वसुधा’ और ‘नया खून’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में उन्होंने संपादन सहयोग भी किया था. लंबी बीमारी के बाद 11 सितंबर 1964 को नयी दिल्ली में इनका निधन हो गया.
‘किन्तु सत्य का उद्घाटन किस भाव से किया जा रहा है, यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि सत्य स्वयं.’ – (साहित्यिक की डायरी : घृणा की ईमानदारी-मुक्तिबोध)