मनोज प्रभाकर (manoj prabhakar) ने जब 1982 में घरेलू क्रिकेट में पदार्पण किया तब से उन्होंने गेंद और बल्ले दोनों से लगातार अच्छा प्रदर्शन किया जिसके दम पर उन्हें 1984 में इंग्लैंड की टीम के खिलाफ नयी दिल्ली में अपना पहला टेस्ट मैच खेलने का मौका भी मिला.
मध्यम गति का स्विंग गेंदबाज और बहुत अच्छी तकनीक वाला बल्लेबाज जिसने कई अवसरों पर भारत की तरफ से पारी का आगाज भी किया. वह दुनिया के उन कुछेक टेस्ट क्रिकेटरों में शामिल हैं जिन्होंने अपनी टीम की तरफ से बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में पारी की शुरुआत की. प्रभाकर की इनस्विंगर और आउटस्विंगर के अलावा अचानक बीच में की गयी धीमी गति की गेंद बेहद खतरनाक मानी जाती थी. उन्होंने 1983 . 84 के रणजी फाइनल में मुंबई के खिलाफ 122 रन बनाने के लिये दोनों पारियों में एक एक विकेट लिया. इसके बाद उन्हें टेस्ट क्रिकेट में खुद को स्थापित करने के लिये काफी संघर्ष करना पड़ा.
प्रभाकर अनुभव हासिल करने के साथ अपनी गेंदबाजी और बल्लेबाजी में काफी निखारा और उनकी मौजूदगी से टीम को भी फायदा मिला. उन्होंने जो आखिरी 16 टेस्ट मैच खेले उनमें से दस में भारत ने जीत दर्ज की थी. विश्व कप 1996 में अपने घरेलू मैदान पर दिल्ली में हालांकि सनथ जयसूर्या ने उनकी गेंदों की बुरी तरह धुनाई की जिससे घरेलू दर्शकों ने ही उनकी खूब हूटिंग की. इससे प्रभाकर के करियर का भी अंत हो गया.
बाद में वे मैच फिक्सिंग के कारण विवादास्पद हो गए. वह दिल्ली और राजस्थान की रणजी टीमों के भी कोच बने. प्रभाकर ने अपने करियर में 39 टेस्ट मैच 32.65 की औसत से 1600 रन बनाये और 37. 30 की औसत से 96 विकेट लिये. 130 एकदिवसीय मैचों में उनके नाम पर 1858 रन और 157 विकेट दर्ज हैं. उन्होंने टेस्ट मैचों में एक और वनडे में दो शतक लगाये.
मनोज प्रभाकर की शानदार इनस्विंग का एक नमूना यहां देखा जा सकता है.