भोपाल गैस त्रासदी दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में हुई. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने में गैस (Methyl isocyanate) रिसाव से यह दुर्घटना हुई. इसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक माना जाता है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार दुर्घटना में 5,295 लोग मारे गए. इसके अलावा 4,902 मामले स्थायी अपंगता, 5,27,894 मामले आंशिक बीमारी तथा 35,455 मामले अस्थायी अपंगता के इस दुर्घटना के कारण सामने आए. यह अलग बात है कि इन सरकारी आंकड़ों पर हमेशा ही सवाल उठाया जाता है.
सरकार तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक का मुआवजा दे चुकी है. यूनियन कार्बाइड को बाद में डाउ केमिकल ने खरीद लिया. डाउ केमिकल कंपनी 2012 में लंदन में आयोजित ओलंपिक में एक प्रोयाजक थी जिसको लेकर भी विवाद हुआ.
इस कारखाने के स्थल पर लगभग 350 टन जहरीला कचरा पड़ा है. इसके निपटाने के प्रयास चल रहे हैं. जून 2012 में केंद्र में एक मंत्री समूह ने जर्मनी फर्म जीआईजेड आईएस को इस काम के लिए 25 करोड़ रुपये देने पर सहमति जताई. लेकिन फर्म ने सितंबर 2012 में कहा कि वह अपनी पेशकश वापस लेती है क्योंकि दुर्घटना प्रभावित परिसर की मिट्टी में कीटनाशक हैं. कंपनी ने यहां तक दावा किया कि यह कचरा उस दुर्घटना का है ही नहीं.