प्रगतिशील कवि व उपन्यासकार बाबा नागार्जुन (baba nagarjun) का जन्म 1911 की ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन बिहार, दरभंगा जिले के तरौनी ग्राम में हुआ था. उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था. आरंभ मे वे उपनाम ‘यात्री’ से लिखते थे. परंपरागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा मिली उन्हें. आम जन के संघर्षें और वाम विचारधारा के प्रति वे आजीवन प्रतिबद्ध रहे-
‘जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम.
आपातकाल में उन्हें जेल भी जाना पडा था. बाद में संपूर्ण क्राति से मोह भंग होने पर उन्होंने उसे संपूर्ण भ्रांति की संज्ञा दी. उन्होंने हिन्दी के अलावा मैथिली,संस्कृत और बांग्ला में भी काव्य रचना की. मैथिली कविता संग्रह “पत्रहीन नग्न गाछ” के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. दर्जन भर कविता संग्रह के अलावे उन्होंने आधा दर्जन उपन्यास और दो खण्ड काव्य भी लिखे हैं. युगधारा, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, प्यासी पथराई आंखें, इस गुब्बारे की छाया में, सतरंगे पंखों वाली, हज़ार-हज़ार बाहों वाली आदि उनके चर्चित कविता संकलन हैं. ‘बलचनमा’ उनका चर्चित उपन्यास है. उनकी चुनी रचनाओं का संकलन दो भागों में प्रकाशित है. उनका निधन पांच नवंबर 1998 को हुआ.
मंत्र कविता बाबा नागार्जुन की बहुचर्चित कविता है. यह एक पीढी के भावों को व्यक्त करती है. इस कविता को स्ट्रिंग-बाउंड बाय फेथ के लिए जुबिन गर्ग ने गाया है.