बफर स्टाक

आपात स्थिति में किसी वस्तु की कमी को पूरा करने के लिए वस्तु का भंडारण करने को बफर  स्टाक (buffer stock) कहते हैं. हमारे यहां सरकार गेहूं व चावल सहित अन्‍य खाद्यान्‍नों का बफर स्‍टाक रखती है.

बफर स्‍टाक को केंद्रीय पूल भी कहते हैं. इसका इस्‍तेमाल लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरण के साथ साथ सूखे या फसल बर्बादी अथवा‍ ऐसी ही किसी और आपात स्थिति से निपटने, मूल्‍य वृद्धि के समय हस्‍तक्षेप करने के लिए किया जाता है. हर साल प्रत्‍येक तिमाही की शुरुआत में निगम के केंद्रीय पूल में कितना अनाज होना चाहिए इसकी मात्रा तय है.

देश में खाद्यान्नों का न्यायपूर्ण वितरण व उनके मूल्यों में स्थायित्व लाने के उद्देश्य से भारतीय खाद्य निगम की स्थापना 1965 में की गई थी. निगम अपने उद्देश्य के लिए सरकार के लिए खाद्यान्नों की खरीद करता है तथा खाद्यान्न का बफर स्टाक बनाए रखता है. निगम इस खाद्यान्न को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत उचित मूल्य की दुकानों पर विक्रय के लिए उपलब्ध कराता है.केंद्रीय पूल में खाद्यान्‍नों को लेकर वर्तमान बफर मानक अप्रैल 2005 से लागू हैं.

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 16 जनवरी 2015 को केंद्रीय पूल में खाद्यान्‍न के बफर मानकों नियमों में संशोधन को मंजूरी दे दी. सीसीईए ने इस बात की भी मंजूरी दे दी कि यदि केंद्रीय पूल में खाद्यान्‍नों का स्‍टाक संशोधित बफर मानकों से अधिक होता है तो खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग अतिरिक्‍त स्‍टाक को खुली बिक्री के जरिए घरेलू बाजार में बेच सकता है या निर्यात कर सकता है. इस उद्देश्‍य के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समूह का गठित है.

नये नियमों के हिसाब से देश के बफर स्टाक में इस तरह से अनाज होना चाहिए—

(मिलियन टन में)

इन तिथियों पर अप्रैल , 2005 से जारी संशोधित
1 अप्रैल 21.2 21.04
1 जुलाई 31.9 41.12
1 अक्‍टूबर 21.2 30.77
1 जनवरी 25.0 21.41
Author: sangopang

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