इंटरनेट ने दुनिया और दुनिया को देखने का नजरिया बदल दिया है. यह आने वाले समय में भी व्यक्तिगत,सार्वजनिक जीवन तथा आर्थिक मोर्चे पर बहुत क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, लेकिन यह सब इसी पर निर्भर करेगा कि सबको इंटरनेट की पहुंच समान रूप से उपलब्ध हो. यानी वे जो चाहें इंटरनेट पर खोज सकें, देख सकें वह भी बिना किसी भेदभाव के या कीमतों में किसी अंतर के. यहीं से ‘इंटरनेट निरपेक्षता’ का सिद्धांत निकला है.
इंटरनेट निरपेक्षता का सिद्धांत
नेट न्यूट्रालिटी को हिंदी में हम ‘इंटरनेट निरपेक्षता’ या इंटरनेट तटस्थता भी कह सकते हैं. मोटे तौर पर यह इंटरनेट की आजादी या बिना किसी भेदभाव के इंटरनेट तक पहुंच की स्वतंत्रता का मामला है. भारत से ज्यादा यह मामला अमेरिका तथा अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए चर्चा का रहा है. इंटरनेट के प्रचार प्रसार व उपयोग बढने के साथ ही इसकी आजादी का मुद्दा हाल ही के वर्षों में बड़ा हो गया है. कंपनियां इस पर तरह तरह के रोक लगाना चाहती हैं. सरकारों का अपना एजेंडा है. यह कंपनियों की कमाई और मुनाफे से तथा सरकारों की नीतियों से जुड़ा मामला है.
नेट न्यूट्रालिटी या इंटरनेट निरपेक्षता का सिद्धांत यही है कि इंटरनेट सेवा प्रदाता या सरकार इंटरनेट पर उपलब्ध सभी तरह के डेटा को समान रूप से ले. इसके लिए समान रूप से शुल्क हो.
तकनीकी रूप से नेट न्यूट्रालिटी या नेट निरपेक्षा का मतलब इंटरनेट पर उपलब्ध एप्प या सामग्री से समान व्यवहार है. यानी इंटरनेट की किसी भी सामग्री, वेबसाइट या एप्प से भेदभाव नहीं हो. इसके तहत दूरसंचार कंपनियों को भुगतान के आधार पर इंटरनेट पर किसी कंपनी या इकाई को न तो वरीयता दी जा सकती है और न ही किसी की अनदेखी की जा सकती है. अगर कोई ऐसा करता है तो यह इंटरनेट की निरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है.
इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर टिम वू (Tim Wu) ने किया था. इसे नेटवर्क तटस्थता (network neutrality), इंटरनेट न्यूट्रालिटी (Internet neutrality), तथा नेट समानता (net equality) भी कहा जाता है.
भारत में विवाद
यह संयोग ही है कि भारत में इंटरनेट निरपेक्षता को लेकर सभी प्रमुख विवादों में दूरसंचार कंपनी एयरटेल कहीं न कहीं शामिल रही है. एयरटेल ने दिसंबर 2014 में इंटरनेट आधारित इन सेवाओं यानी ओटीटी के लिए अलग से शुल्क लगाने की घोषणा की थी. लेकिन उसके इस कदम को इंटरनेट की आजादी आदि के खिलाफ बताते हुए सोशल मीडिया में खूब आलोचना हुई. कंपनी के इस कदम को इंटरनेट की आजादी या इंटरनेट तक समान पहुंच अथवा इंटरनेट तटस्थता के खिलाफ बताया गया. सरकार ने भी इसके खिलाफ बयान दिया और अंतत: कंपनी ने इसे वापस ले लिया. लेकिन इससे इंटरनेट निरपेक्षता की बहस ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया.
इसके बाद एयरटेल ने अप्रैल में एक नयी पहल के जरिए फिर विवाद खड़ा कर दिया. कंपनी ने एक नया मार्केटिंग या विपणन प्लेटफार्म ‘एयरटेल जीरो’ पेश किया. कंपनी का कहना था कि इस प्लेटफार्म के जरिए उसके ग्राहक विभिन्न मोबाइल एप्प का नि:शुल्क इस्तेमाल कर सकेंगे. यानी इसके लिए उन्हें इंटरनेट खर्च नहीं करना होगा क्योंकि यह खर्च एप्प बनाने वाली कंपनियां वहन करेंगी.
कंपनी की इस पहल का कड़ा विरोध हुआ विशेष सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ ‘सेवदइंटरनेट’ जैसा अभियान खड़ा हो गया. शाहरुख खान से लेकर अरविंद केजरीवाल व कांग्रेस पार्टी तक ने इंटरनेट पर समान पहुंच के उपयोक्ताओं क अधिकारों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया. इसके बाद एयरटेल ने हालांकि कहा कि उसका एयरटेल जीरो खुला प्लेटफार्म और यह भुगतान के आधार पर किसी वेबसाइट को ब्लाक या बंद नहीं करता अथवा किसी वेबसाइट को वरीयता नहीं देता है.
ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट ने पहले तो इस मामले में एयरटेल का बचाव किया लेकिन अगले ही दिन उसने एयरटेल जीरो से दूरी बना ली. इसी तरह ई कामर्स कंपनी स्नैपडील ने भी खुद को नेट निरपेक्षता का समर्थक बताया.
सरकार की राय
नेट निरपेक्षता को लेकर सरकार की शुरुआती राय यही रही है कि वह इंटरनेट की आजादी यानी समान पहुंच के पक्ष में है. दूरसंचार व आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 13 अप्रैल 2015 को कहा, ‘हमें बिना किसी भेदभाव के इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिश करनी होगी’
दूरसंचार विभाग ने 23 जनवरी 2015 को एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की जो इंटरनेट न्यूट्रालिटी के दूरसंचार क्षेत्र पर आर्थिक असर का आकलन करेगी. इसी तरह दूरसंचार नियामक ट्राई द्वारा जारी वह परामर्श पत्र भी है जिसमें उसने नेट निरपेक्षता के बारे में आम लोगां की राय मांगी. नेट न्यूट्रालिटी इंडिया के अनुसार इस मुद्दे पर लाखों पत्र ट्राई को भेजे गए हैं. ट्राई की इस पहल का भी एक तरह से विरोध हो रहा है.
फेसबुक का मत
प्रमुख सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट गूगल के प्रमुख मार्क जुकरबर्ग ने 15 अप्रैल 2015 को एक बयान में कहा कि उनका अभियान इंटरनेट डाट आर्ग व नेट निरपेक्षता साथ साथ चल सकते हैं. इसके साथ ही उन्होंने इन आलोचनाओं को खारिज किया कि इंटरनेट डाट आर्ग कार्यक्रम इंटरनेट निरपेक्षता की अवधारणा के खिलाफ है.
सेव द इंटरनेट अभियान का वीडियो यहां देखें
इंटरनेट डाट आर्ग की भारत में रिलायंस कम्युनिकेशंस से गठजोड़ है और इसके लिए 33 वेबसाइटों तक नि:शुल्क पहुंच की घोषणा की गई थी. लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह नेट निरपेक्षता के मूल सिद्धांत के खिलाफ है.
ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट ने पहले तो इस मामले में एयरटेल का बचाव किया लेकिन अगले ही दिन उसने एयरटेल जीरो से दूरी बना ली. इसी तरह ई कामर्स कंपनी स्नैपडील ने भी खुद को नेट निरपेक्षता का समर्थक बताया.