महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा तो बस आठवीं तक थी. यूं घर पर संस्कृत, अंग्रेज़ी, पाली, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन उन्हें कराया गया था. आगे भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण कथाओं का स्वाध्याय उन्होंने किया.
प्रसाद के पिता देवी प्रसाद तंबाकू और सुंघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार सुंघनी साहू के नाम से प्रसिद्ध था. प्रसाद को छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में शुमार किया जाता है, अन्य तीन है सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, संमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा. एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात. अपनी लेखनी से उन्होंने भारतीय मनीषा के गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन किया –
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो !’
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी !
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो, बढ़े चलो !
उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में झरन, कानन-कुसुम, आँसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक हैं. स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री आदि उनके प्रमुख नाटक हैं और छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी और इन्द्रजाल उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं. कंकाल, तितली, इरावती उनके तीन उपन्यास हैं. 48 साल के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि तमाम विधाओं में कलम चलाई. 14 जनवरी 1937 को वाराणसी में ही उनका निधन हो गया.