चीनी कोटा

देश का चीनी उद्योग सरकार के नियंत्रण में है और सरकार ही तय करती है कि मिलें कितनी चीनी बेच सकेंगी. इसे ही चीनी का कोटा तय करना कहते हैं. अभी तक तो यह मासिक आधार पर होता है लेकिन सरकार इसे त्रैमासिक आधार पर करने की सोच रही है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी राशन की दुकानों पर बिकने वाली चीनी को लेवी चीनी कहा जाता है जबकि खुले बाजार में बिकने वाली चीनी को नान लेवी चीनी कहा जाता है. सरकार ही तय करती है कि हर मिल लेवी व नान लेवी मद में कितनी चीनी बेच सकेगी.

नियंत्रित प्रणाली के तहत हर चीनी मिल को अपने उत्‍पादन का दस प्रतिशत हिस्‍सा सरकार को लागत दर से कम कीमत (below- cost rates) पर बेचना होता है, सरकार इस चीनी का इस्‍तेमाल राशन की दुकानों में करती है. इसे लेवी चीनी कहा जाता है. मिलें लेवी चीनी की आपूर्ति उत्‍पादन लागत की 60 प्रतिशत की दर पर करती हैं.

चीनी उद्योग को नियंत्रणमुक्‍त करने तथा इस पर विचार का मुद्दा काफी दिनों से चल रहा है. जनवरी 2012 में ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए सी रंगराजन की अध्‍यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी.

Author: sangopang

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