ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007- 2012) की अवधि एक अप्रैल, 2007 से शुरू होकर 31 मार्च 2012 तक रही. इस दौरान देश के आर्थिक मोर्चे पर अनेक बदलाव देखने को मिले जबकि हर तरफ ग्रोथ रेट के गीत गाये जाने लगे और वृद्धि दर को ही विकास का पैमाना मान लिया गया.
हर क्षेत्र के प्रदर्शन का आकलन उसकी वृद्धि दर से किया जाने लगा जबकि सामाजिक व आर्थिक विकास में उनका वास्तविक योगदान गौण हो गया. तीव्र व समावेशी विकास की बात शायद सिरे नहीं चढ सकी.
योजना अवधि में वृद्धि दर उतनी नहीं रही जितनी की अपेक्षा की जा रही थी. यह आठ प्रतिशत से कुछ कम रही. वैश्विक मोर्चे पर मंदी, घोटालों, राजनीतिक घटनाक्रमों का असर इस योजना के निष्पादन पर रहा. निर्यात के पारंपरिक गढ अमेरिका, यूरोप ढह रहे थे तो डालर की तुलना में रुपया कमजोर से कमजोर होता गया. आईटी क्षेत्र में भारत की तूती बोली, वाहन व टेलीफोन उद्योगों ने वृद्धि के नये रिकार्ड बनाये.
योजना भले ही नौ प्रतिशत की औसत सालाना वृद्धि दर हासिल नहीं कर सकी, न ही देश के सभी गांवों में विद्युतीकरण और ब्राडबैंड सुविधा जैसे लक्ष्यों को हासिल किया जा सका लेकिन फिर भी कई मोर्चों पर अच्छा प्रदर्शन रहा.