संसद ने खान व खनिज (विकास व नियमन) संशोधन विधेयक, 2015 को 20 मार्च 2015 को पारित कर दिया. इस विधेयक का उद्देश्य खनिज रियायतों की अनुमति में विवेकाधीन अधिकारों को समाप्त करना है. इस्पात व खान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विधेयक पारित होने पर कहा कि अब खान आवंटन केवल नीलामी के जरिए होगा और इस विधेयक से प्रणाली में पारदर्शिता आएगी तथा खनिज क्षेत्र को निवेश मिलेगा.
इस विधेयक [Mines and Minerals (Development and Regulation) (Amendment) Bill] का उद्देश्य एमएमडीआर कानून, 1957 के कुछ प्रावधानों को समाप्त करना है. खनन उद्योग में उभरती समस्याओं के मद्देनजर ऐसा करना जरूरी हो गया था. पिछले कुछ वर्ष में देश में दिए गए नई खानों के पट्टे विवाद में फंस गए थे. इसके अतिरिक्त दूसरी बार और उसके बाद नवीकरण से भी उच्चतम न्यायालय के कुछ निर्णय प्रभावित हो रहे थे और खनन क्षेत्र में उत्पादन बहुत घट गया था जिससे उन खनिजों का उपयोग करने वाले आयात करने लगे थे.
संशोधित विधेयक के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:
विवेकाधीन अधिकारों की समाप्ति: आवंटन की एकमात्र विधि नीलामी होगी. संशोधन के तहत खनिज रियायतों की अनुमति में विवेकाधीन अधिकार समाप्त कर दिए गए हैं. सभी तरह की खनिज रियायतों की अनुमति संबंधित राज्य सरकारें देती हैं वे अनुमति देती रहेंगी लेकिन सभी तरह की खनिज रियायतों की अनुमति नीलामी के जरिए ही दी जाएगी.
खनिज क्षेत्र को प्रोत्साहन: दूसरे और उसके बाद नवीकरण के लिए लंबित आवेदनों के कारण खनन उद्योग में परिचालन निरंतर प्रभावित हो रहा है. असल में इसके कारण बड़ी संख्या में खान बंद हो गई हैं. संशोधन के तहत इन समस्याओं को दूर कर दिया गया है.
प्रभावित लोगों के लिए सुरक्षा उपाय: विधेयक में उन सभी जिलों में जिला खनिज प्रतिष्ठान (डीएमएफ) स्थापित करना अनिवार्य बनाया गया है जहां खनन किया जाता है. यह कदम लंबे समय से चली आ रही शिकायतों के समाधान के लिए उठाया गया है.
अन्वेषण एवं निवेश को प्रोत्साहन: भारतीय खनन उद्योग में अन्य देशों की तरह अन्वेषण कार्य नहीं हो रहा है. इस चुनौती से निपटने के लिए राष्ट्रीय अन्वेषण न्यास की स्थापना की जाएगी. इससे अन्वेषण गतिविधियों के लिए सरकार के पास समर्पित निधि उपलब्ध हो सकेगी.
प्रक्रिया का सरलीकरण: संशोधन के तहत केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी. इसलिए राज्य सरकारों को खनिज रियायतों की अनुमति देने की प्रक्रिया सरल होगी और उसमें तेजी लाई जा सकेगी.
अवैध खनन को रोकने के लिए सख्त प्रावधान: कानून के तहत अब अधिकतम 5 वर्ष की जेल या 5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर जुर्माना लगाया जा सकेगा. राज्य सरकारों को अवैध खनन के मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने के अधिकार दिए गए हैं.