केदारनाथ सिंह

केदारनाथ सिंह का जन्म 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में हुआ था. उन्‍होंने बनारस हिन्‍दू विश्वविद्यालय से 1956 में हिन्दी में एमए किया. कई कालेजों में अध्‍यापन के बाद जे. एन. यू में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से उन्‍होंने पदावकाश लिया. केदारनाथ सिंह ने आरंभ में कुछ अच्‍छे गीत भी लिखे थे. इनकी मुख्‍य पुस्‍तकें हैं – अभी बिल्‍कुल अभी, जमीन पक रही है, यहां से देखो, अकाल में सारस, उत्‍तर कबीर और अन्‍य कविताएं और ताल्‍सताय और साइकिल. ‘बाघ’ उनकी चर्चित लम्बी कविता है. पर अपनी छोटी कविताओं के संवेदनशील चित्रों के लिए उन्‍हें ज्‍यादा सराहा जाता है-

नहीं
हम मण्डी नहीं जाएंगे
खलिहान से उठते हुए
कहते हैं दाने॔

जाएंगे तो फिर लौटकर नहीं आएंगे
जाते- जाते
कहते जाते हैं दाने

”अगर लौट कर आये भी
तो तुम हमे पहचान नहीं पाओगे
अपनी अन्तिम चिट्ठी में
लिख भेजते हैं दाने

इसके बाद महीनों तक
बस्ती में
कोई चिट्ठी नहीं आती.”

अकाल में सारस के लिए 1989 में उन्‍हें साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार से नवाजा गया. इसके अलावा उन्‍हें केरल का कुमारन आशान पुरस्‍कार, दिनकर पुरस्‍कार, उडीसा का जीवन भारती पुरस्‍कार और व्‍यास सम्‍मान मिल चुका है. 2010 में उन्‍होंने दिल्ली की हिंदी अकादमी का दो लाख का सर्वोच्च श्‍लाका सम्मान ठुकरा दिया था.

Author: sangopang

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