मेपल दुनिया में सबसे प्यारा, सुंदर सजावटी दरख्त माना जाता है तो इसके पत्ते यानी मेपल लीफ अपने अलग अस्तित्व के साथ जीते हैं. कई बार तो इस पेड़ की पहचान उसके पत्तों से भी की जाती है. और हो भी क्यों न, मेपल के पत्ते कोई ऐसे वैसे पत्ते-पत्तियां थोड़े ना हैं. कनाडा का राष्ट्रीय ध्वज देखिए उसमें बीच के हिस्से में चटक लाल रंग से जो पत्ती है ना, वह यही मेपल लीफ है.
कैंब्रिज के धीर गंभीर गलियारे हों या बोलोनिया के आसपास की पहाडियां, कनाडा, चीन, जापान हो या हिमालय के युवा जंगल.. मेपल की शोखियां हर कहीं नज़र आती हैं. अलग अलग रंगों में. अलग अदाज में. पर्णपाती वर्ग का यह पेड़ दुनिया के अनेक महाद्वीपों में पाया जाता है विशेषकर पहाड़ी शीतोष्ण इलाकों में. मेपल का अर्क चीनी बनाने में काम आता है लेकिन इसकी अधिकांश किस्मों में अर्क नहीं होता है. इसका लकड़ी बहुत मजबूत होती है और फर्नीचर के रूप में तो उसकी सुंदरता और भी निखरकर सामने आती है.
मेपल की अनेक किस्में और हर किस्म की अपनी विशेषता. उन्हें अपने अस्तित्व के लिए माहौल भी अलग अलग चाहिए होता है. ऊंचाई 10-15 फीट से लेकर 70-80 फीट तक होती है. अनेक देशों में जब गलियों, घरों के सजावट की बात मेपल से शुरू होकर इसी पर खत्म हो जाती है. इसकी अनेक किस्में हैं. एक शुगर मेपल ट्री है जो पश्चिमी और उत्तर पश्चिमी अमेरिका में बहुतायत से पाया जाता है. जापानी मेल ट्री के पत्ते वसंत में चटक लाल रंग के होते हैं.
इसकी एक और खासियत देखिए कि अन्य पेड़ों की तरह इसके फूल नीचे की ओर झुकते नहीं हैं बल्कि तने रहते हैं. स्वपरागित है. अनेक फूल स्वत: ही निषेचन क्रिया पूरी कर लेते हैं. अपने थार में आक होता है. उसके बीज पंख वाले होते हैं और उन्हीं पर सवार होकर आक की पीढि़यां कहीं से कही तक पहुंच जाती हैं. मेपल के साथ ही वैसा ही कुछ है और हवाओं से तैरता हुआ शायद यह जमीनी सीमाओं को लांघता चला गया.
कनाडा के राष्ट्रध्वज में मेपल की लाल रंग के पत्ते को दर्शाया गया है. यह प्रकृति व पर्यावरण के उत्सव का प्रतीक है. कितने पत्तों को इतना बड़ा सम्मान मिलता है. जैतून की टहनी को शांति का प्रतीक माना जाता है और वह संयुक्त राष्ट्र के ध्वज का अभिन्न हिस्सा है. इसके अलावा शायद मेपल लीफ ही है जिसे इतना बड़ा दर्जा दिया गया है. यूरोपीय देशों की खुशी के तराने तब तक पूरे नहीं होते जब तक कि उनमें मेपल के घने भरे पेड़ का जिक्र न हों और दर्द भरी कहानियों में मेपल के उदास पत्तों गिरते हैं.
एंजल टेलर गीत गाती है ‘.. ओ दिस मेपल ट्री’ और उपन्यास ‘पीटर पैन इन स्कारलेट ’ का पेन शरद ऋतु में अपनी गर्मियों की पोशाक के बजाए, नीलकंठ के पंखों व मेपल के पत्तों का एक अंगरखा पहनता है. निर्मल वर्मा की डायरियों के पन्नों में मेपल की पत्तियां यत्र तत्र बिखरी मिलती हैं. निर्मल को शिशिर के मौसम से प्यार था और इन दिनों मेपल के पेड़ धूप मे सुलगते थे। ऐसी दुपहरियों में वे कैंब्रिज की वाइड्नर लायब्रेरी के आगे घास पर लेटते तो मेपल के पत्ते उनकी छाती पर आकर गिरते रहते थे. रस्किन बांड तो जहां भी गए मैपल की पेड़ों मनोहारी छवि को जीते रहे हैं. जैसे कि ऋतुराज वसंत में लंदन में घूमिए तो अभिशप्त प्रेतों की तरह खड़े मेपल की बात की जाती है. प्रेम करने के दिनों में मेपल के दरख्तों से सजी सड़कें सपनों की गलियों में ले जाती हैं तो प्रेम में हारे हुए प्रेमी मेपल से झरते बर्फ के आँसुओं को देखते हुए बैठे रहते हैं.
बताते हैं कि रंग बदलने में मेपल का कोई सानी नहीं है. देश और दुनिया के हिसाब से रंग बदल लेता है. अमरीका, कनाडा में मेपल के पेड़ के रस के साथ पेनकेक खाया जाता है. इटली के मेपल से रस नहीं निकलता. अपनी भाषा में मेपल को क्या कहतें हैं यह बड़ा सवाल है. एक ब्लागर ने हिंदी की शब्दकोश के हवाले से इसे द्विफल लिखा है तो देवेंद्र मेवाड़ी को तुंगनाथ की यात्रा के दौरान बताया जाता है कि ऊपर के जंगलों में कांचुला यानी एसर, अंयार आदि तमाम प्रजातियों के पेड़ हैं और कांचुला को ही अंग्रेजी में मेपल कहते हैं.
वैसे एक तथ्य यह भी है कि वायलिन बनाने में मेपल की लकड़ी का इस्तेमाल होता है. और इसे महज संयोग नहीं माना जा सकता कि कोई आदित्य (चोपड़ा) जब ‘मोहब्बतें’ का तराना लिखता है तो पर्दे पर वायलिन और सुनहरी मेपल लीफ को साथ साथ पेश करता है.
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