गोली दागो पोस्टर, जनता का आदमी, कपड़े के जूते और ब्रूनों की बेटियां जैसी लंबी कविताओं से अपनी पहचान बनाने वाले कवि आलोक धन्वा (alok dhanwa) का जन्म 1948 में बिहार के मुंगेर जनपद में हुआ था. वे हिंदी के क्रांतिकारी वाम विचारधारा वाले कवियों में शुमार किए जाते हैं-
‘जब कविता के वर्जित प्रदेश में
मैं एकबारगी कई करोड़ आदमियों के साथ घुसा
तो उन तमाम कवियों को
मेरा आना एक अश्लील उत्पात-सा लगा
जो केवल अपनी सुविधाके लिए
अफ़ीम के पानी में अगले रविवार को चुरा लेना चाहते थे.
‘दुनिया रोज बनती है’ उनका चर्चित कविता संग्रह है. उन्हें पहल सम्मान, नार्गाजुन सम्मान, फिराक गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान और भवानी प्रसाद मिश्र सम्मान सहित अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है. उनकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी और रूसी में हो चुके हैं.