हिन्दी के चर्चित कवि अजित कुमार का जन्म नौ जून 1933 को उत्तरप्रदेश के लखनऊ शहर में हुआ. उनका पूरा नाम अजित शंकर चौधरी है अजित कुमार को बचपन से ही अपने आस-पास एक साहित्यिक माहौल मिला. उनके पिता जहां एक साहित्यिक प्रकाशनघर चलाते थे वहीं उनकी मां सुमित्रा कुमारी सिन्हा अपने समय की चर्चित कवयित्री थीं. इनकी बहन कीर्ति चौधरी अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक की कवयित्री थीं और इनकी पत्नी स्नेहमयी चौधरी भी कवयित्री हुईं .
अजित कुमार ने कानपुर,लखनऊ और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की, कुछ समय डी.ए.वी. कालेज, कानपुर में अध्यापन किया. बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल महाविद्यालय में लंबे अरसे तक अध्यापन करते रहे. सेवा से अवकाश के बाद भी लेखन के क्षेत्र में उनकी सक्रियता बनी रही. ‘अकेले कंठ की पुकार’,’अंकित होने दे’, ‘ये फूल नहीं’,’घरौंदा’ आदि उनके चर्चित कविता संग्रह हैं. अजित कुमार के गीतों में कहन के नये प्रयोग मिलते हैं –
”गीत जो मैंने रचे हैं
वे सुनाने को बचे हैं.
क्योंकि-
नूतन ज़िन्दगी लाने,
नई दुनिया बसाने के लिए
मेरा अकेला कंठ–स्वर काफ़ी नहीं है.
–इस तरह का भाव मुझ को रोकता है.
शून्य, निर्जन पथ, अकेलापन :
सभी कुछ अजनबी बन-–
मुखरता मेरी न सुनता
–टोकता है .
इसलिए मुझ को न पथ के बीच छोड़ो ”
अजित कुमार ने संस्मरणों की भी कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ‘मन्नू भंडारी : शालीनता और सौजन्य का एक आख्यान’ और ‘घरबारी मसीहा विष्णु प्रभाकर’ पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं . बच्चन-रचनावली का संपादन भी उन्होंने किया. इसके अलावे उनके लेखों और समीक्षाओं की भी कई पुस्तकें हैं.