नोहर को वैदिक काल में सात नदियों से सिंचित सप्त सैन्धव नामक इलाके का हिस्सा था। यानी सात नदियों का पानी इसे सींचता था। महाभारत काल में यह इलाका कुरू प्रदेश में आ गया। जनश्रुतियों के अनुसार अज्ञातवात के दौरान पांडव इस इलाके में आए और नोहर के पास पांडूसर गांव में रहे। भले ही ये सुनी सुनाई बातें हों लेकिन यह भी सच है कि नोहर (nohar) हो या इसके पास के सोती व क्रोती गांव और वहां के थेहड़, वहां मिले मृदभांडों को महाभारतकालीन माना गया है।कहा जाता है कि ईसा से 1000 साल यानी आज से लगभग 3000 साल पहले यहीं सरस्वती व दृषदवती के डेल्टा में करोत नगर बसा हुआ था।
इतिहास की किसी किताब में लिखा है कि चीनी यात्री ह्वेनसांग अपनी भारत यात्रा के दौरान नोहर के इस इलाके में भी आया था। उसने यहां बौद्ध मठ देखे। उसके काल में यहां बौद्ध के साथ साथ जैन व हिंदू धर्म भी फल फूल रहा था। कहा जाता है कि प्राकृतिक बदलावों के बीच नदियों ने रास्ता बदल लिया या वे सूख गयीं और कभी वनाच्छादित रहे इस इलाके में बालू का जंगल उग आया जिसे थार कहा जाता है। जहां तक नोहर के नाम का सवाल है तो कहा जाता है कि नवहरा का अपभ्रंश नोहर है।
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