कौशल से परिपूर्ण कलात्मक बल्लेबाज जिसकी तकनीक पर किसी को संदेह नहीं लेकिन यदि रोहित शर्मा के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के पहले छह साल पर गौर करें तो पता चल जाता है कि वह अवसरों का अच्छी तरह से फायदा उठाने में नाकाम रहे। यही वजह थी कि जिस रोहित को अगली पीढ़ी का बल्लेबाज माना जा रहा था वह टीम से अंदर बाहर होता रहा। इस बीच हालांकि घरेलू क्रिकेट में उन्होंने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया। चाहे 2008.09 के रणजी फाइनल की दोनों पारियों में शतक हों या फिर आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स और बाद में मुंबई इंडियन्स की तरफ से कई शानदार पारियां। रोहित राष्ट्रीय टीम में वापसी का मार्ग प्रशस्त करते लेकिन फिर कुछ अवसरों पर सफल होते और कुछ पर नाकाम। निरंतर एक जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाने के कारण उनका करियर उतार चढ़ाव वाला बन गया।
इंग्लैंड में चैंपियन्स ट्राफी के दौरान सलामी बल्लेबाज के नये अवतार में उतरना रोहित के लिये वरदान साबित हुआ। उन्होंने पांच मैचों में केवल 177 रन बनाये लेकिन इस बीच शिखर धवन के साथ मिलकर टीम को अच्छी शुरूआत दिलायी। रोहित ने अक्तूबर . नवंबर 2013 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ जयपुर में नाबाद 141 रन बनाये और फिर बेंगलूर में 209 रन बनाकर वनडे में दोहरा शतक जड़ने वाले तीसरे बल्लेबाज बने। उनसे पहले सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग ही यह कारनामा कर पाये थे। रोहित यहीं पर नहीं रूके। पिछले साल श्रीलंका के खिलाफ ईडन गार्डन्स पर वह 264 रन ठोककर वनडे में व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ पारी को उस मुकाम पर लेग गये जहां तक पहुंचना किसी भी बल्लेबाज के लिये आसान नहीं होगा।
लेकिन रोहित की चोट भारतीय टीम के लिये बड़ा सरदर्द बनी हुई है। उन्होंने आस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय श्रृंखला के पहले मैच में मेलबर्न में 138 रन की शानदार पारी खेली लेकिन इसके बाद चोट के कारण आगे के मैचों में नहीं खेल पाये। भारत को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा और वह इस सीरीज में एक भी मैच नहीं जीत पाया। अच्छी शुरूआत नहीं मिलने के कारण भारत की मजबूत बल्लेबाजी की पोल खुल गयी। इसलिए रोहित विश्व कप के भारतीय अभियान के लिये बेहद महत्वपूर्ण हैं। रोहित अब तक विश्व कप में नहीं खेले हैं लेकिन उन्हें कुल 127 वनडे मैच खेलने का अनुभव है जिसमें उनके नाम पर 3890 रन दर्ज हैं। रोहित ने छह शतक और 23अर्धशतक भी लगाये हैं।