ओटीटी का फंडा

पिछले दिनों ओटीटी शब्‍द तथा ओटीटी कंपनियों की दूरसंचार कंपनियों से खींचतान काफी चर्चा में रही है. आखिर क्‍या करती हैं ओटीटी कंपनियां.

ओटीटी दरअसल ओवर द टाप over-the-top कंपनियों को कहा जाता है. इस तरह की कंपनियां इंटरनेट के जरिए वायस काल की सुविधा उपलब्‍ध कराती हैं. इन कंपनियों में स्‍काइप, वाइबर, लाइन प्रमुख हैं.

विशेषकर प्रसारण के क्षेत्र की बात की जाए तो ओटीटी का मतलब इंटरनेट के जरिए आडियो, वीडियो तथा अन्‍य मीडिया का प्रसारण इसके दायरे में आता है. सबसे बड़ी बात यह है कि दूरसंचार कंपनियों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता. जैसे कि अमुक दूरसंचार कंपनी इंटरनेट सेवा उपलब्‍ध कराती है तो वह इंटरनेट पैक आदि के पैसे लेती है. अब ग्राहक इसी इंटरनेट के जरिए स्‍काइप, वाइबर आदि सेवाओं के जरिए वीडियो, आडियो काल, एसएमएस कर सकता है. इन पर दूरसंचार कंपनी का कोई नियंत्रण नहीं होता.

विवाद

भारत में स्‍काइप, वाइबर जैसी सेवाएं लगातार लोकप्रिय हो रही हैं. लाखों की संख्‍या में लोग इनका इस्‍तेमाल कर रहे हैं. दूरसंचार कंपनियां लंबे समय से मांग कर रही हैं कि इन सेवाओं को भी कानून के दायरे में लाया जाए.

दूरसंचार कंपनी एयरटेल ने दिसंबर 2014 में इंटरनेट आधारित इन सेवाओं यानी ओटीटी के लिए अलग से शुल्‍क लगाने की घोषणा की थी. लेकिन उसके इस कदम को इंटरनेट की आजादी आदि के खिलाफ बताते हुए सोशल मीडिया में खूब आलोचना हुई. सरकार ने भी इसके खिलाफ बयान दिया और अंतत: कंपनी ने इसे वापस ले लिया.

बाद में एयरटेल की पैतृक कंपनी भारती इंटरप्राइजेज के उपाध्‍यक्ष अखिल गुप्‍ता ने 21 जनवरी को कहा कि कंपनी इस तरह की सेवाओं के खिलाफ नहीं है बल्कि वह तो उनके साथ तालमेल चाहती है.

दूरसंचार विभाग ने 23 जनवरी 2015 को एक उच्‍च स्‍तरीय समिति के गठन की घोषणा की जो इन सेवाओं के दूरसंचार क्षेत्र पर आर्थिक असर का आकलन करेगी.

Author: sangopang

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